Tribal Culture of Banswara

बांसवाड़ा की आदिवासी संस्कृति

इस जिले की 70 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या आदिवासी भीलों की है। भीला या मीणा भारत के प्राचीनतम निवासियों में से हैं। कर्नल टाड ने इनाक नाम ‘वन पुत्र’ रखा है जो सदियों से जंगलों में रहते आए हैं। यहां की आदिवासी संस्कृति जन जीवन के प्रमुख केन्द्र बिन्दु स्थान—स्थान पर लगने वाले मेलें एवं हाट है। बांसवाड़ा—डूंगरपुर की सीमा पर स्थित बेणेश्वर के मले में आदिवासी हजारों की संख्या में अपने पूर्वजों की अस्थियों को माही—सोम—जाखम के त्रिवेणी के संगम पर पवित्र आबूदरा में प्रवाहित करते हैं। आदिवासियों का सहज सरल नृत्य और लोक गीतों का संगीत आन्नददायक होता है। महिलाएं अपने शरीर को चांदी के गहनों से सजाती हैं। नृत्य कभी—कभी 24 घंटे चलता रहता है। इनका नृत्य पालीनोच शादियों पर होता है तथा गेर नृत्य त्योहारों पर होता है। इन नृत्यों को आ​दिवासी बड़ी तनमयता से गीतों के साथ करते हैं।

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