Districts of Rajasthan: zila darshan bhilwara

Districts of Rajasthan: zila darshan bhilwara rajasthan gk in hindi pdf

जिला दर्शन— भीलवाड़ा (Bhilwara)  

भीलवाड़ा राजस्थान का एक प्रमुख जिला है जो अपने इतिहास के साथ ही अपने उद्योग धंधों की वजह से भी राज्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है हालांकि विकास के मामले में अभी इस जिले में काफी काम करना बाकि है. प्राकृतिक और भौगोलिक विषमताएं और पानी की कमी की वजह से इस जिले में वैसा विकास नहीं हो पाया है जैसी इसको जरूरत है। इसके बावजूद यहां वस्त्र उद्योग बहुत फला—फूला है।

भीलवाड़ा (Bhilwara)— ऐतिहासिक तथ्य Click here to read More

➤ प्राचीन अभिलेखों तथा अवशेषों से भीलवाड़ा जिले के इतिहास की गाथा का पता चलता है।
➤ पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष पुरानी नदियों के किनारे बिखरे हुए हैं।
➤ इनमें आंगूचा, ओझियाणा एवं हुरड़ा मुख्य हैं।
➤ जिले के बागोर गांव में हुई खुदाई में पाषाण युगीन सभ्यता का पता चलता है।
➤ बागोर भारत का सबसे सम्पन्न पाषाणीय सभ्यता स्थल है।
➤ वैदिक काल में सम्पन्न किये जाने वाले धार्मिक कार्यों कर जानकारी नान्दशा में पाए जाने वाले यूप स्तम्भ से होती है।
➤ नवीं से बारहवीं शताब्दी के प्राचीन मंदिरों से यह जिला परिपूर्ण है।
➤ बिजौलिया, तिलस्वा एवं माण्डलगढ़ मध्यकालीन मंदिर कला एवं स्थापत्य के अनूठे नमूने हैं। ➤ मन्दाकिनी मंदिर एवं वहां के शिलालेख भी पुरातत्व की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
➤ यह क्षेत्र गुहील एवं चौहान राजपूतों के राज्य का एक भाग रहा है।
➤ भीलवाड़ा जिले के कई क्षेत्र मुगलकाल मे मेवाड़ राज्य एवं शाहपुरा ठिकाने के भाग रहे।
➤ मेवाड़ राज्य एवं शाहपुरा ठिकाने के संयुक्त राजस्थान में विलय के बाद सन् 1949 में एक अलग जिला ‘भीलवाड़ा’ अस्तित्व में आया।
➤ सन् 1951 से 1961 के मध्य दो ग्राम चित्तौड़गढ़ जिले से इस जिले में सम्मिलित किये गए और इसके साथ ही चार तहसीलें बदनौर, करेड़ा, फूलिया व अरवड़ समाप्त कर दी गई।
➤ जिले के माण्डलगढ़, माण्डल व अन्य क्षेत्रों का मुगलकालीन आक्रमण के दौरान रक्षा चौकियों के रूप में इस्तेमाल ऐतिहासिक तथ्य है।

भीलवाड़ा (Bhilwara)— भौगालिक स्थिति Click here to read More

➤ इस जिले के भौगोलिक, भूगर्भ, जलनिकास, ढलान एवं उच्चावय गुणों के आधार पर 13 भू-आकृतिक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है।
➤ पश्चिमी भाग को छोड़कर सामान्यतः जिला आयताकार है। पूर्व भाग की तुलना में पश्चिमी भाग अधिक चौड़ा है।
➤ जिले का भू-भाग सामानयतः एक उठा हुआ पठार हैं, जिसके पूर्वी भाग में कहीं-कहीं पहाड़िया हैं।
➤ अरावली श्रेणियां जिले में कई स्थानों पर दृष्टिगोचर होती हैं, जो अधिकांशतः दक्षिणी भाग माण्डलगढ़ तहसील में हैं।
➤ एक अलग पहाड़ी उत्तरी-पूर्वी भाग में जहाजपुर कस्बे तक फैली हुई है।
➤ जिले में बहने वाली प्रमुख नदियां बनास एवं उसकी सहायक बेडच, कोठारी व खारी हैं।
अन्य छोटी नदियां मानसी, मेनाली, चन्द्रभाग एवं नागदी हैं।
➤ बनास नदी अरावली पर्वत श्रेणियों में से उदयपुर जिले के उत्तरी भाग से निकलकर भीलवाड़ा जिले में दूड़िया गांव के पास प्रविष्ठी होती है।
➤ यह नदी उत्तर एवं तत्पश्चात् उत्तरी—पूर्वी दिशा की ओर बहती हुई जहाजपुर तहसील के पश्चिमी क्षेत्र से टोंक जिले में प्रवेश कर जाती है।
➤ जिले में कोई प्राकृतिक झील नहीं है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — जलवायु Click here to read More

➤ जिले की जलवायु सम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक है। गर्मियों में तेज गर्मी पड़ती है।
➤ सर्दियां बहुत कड़काने वाली होती हैं। जिले के उत्तरी-पूर्वी भाग की जलवायु पूर्वी भाग की जलवायु से भिन्न है।
➤ सामान्यतः सर्दी का मौसम होता है जो मार्च से जून तक रहता है।
➤ वर्षा का मौसम जून से आधे सितम्बर तक रहता है।
➤ तापमान लगातार मार्च से जून तक बढ़ता जाता है जबकि यह मध्य नवम्बर से जनवरी तक घटता जाता है।
➤ जिले की सामान्य वर्षा 60.35 से.मी. है।
➤ मौसम से संबंधित एक मौसम केन्द्र भीलवाड़ा शहर में स्थापित है। कुल मिलाकर जिले में वर्षा मापने के 12 केन्द्र हैं।
➤ जिले के पूर्वी भाग में सामान्यतः वर्षा शेष भाग की अपेक्षा अधिक होती है। कुल वार्षिक वर्षा 94 प्रतिशत मानसून की अवधि में होती है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — दर्शनीय स्थल Click here to read More

➤ भीलवाड़ा मे पर्यटन की दृष्टि से प्राचीन बड़ा मंदिर अपनी प्रसिद्धि लिये हुए है। इस मंदिर में विष्णु लक्ष्मी की प्रतिमायें दर्शनीय हैं।
➤ इसके अतिरिक्त प्राचीन तालाब धर्म तलाई (धांधालाई) के किनारे नगर विकास न्यास द्वारा निर्मित सेन्ट्रल पार्क नगर वासियों के लिए पिकनिक का अच्छा स्थल है।
➤ गांधीनगर बस्ती में स्थित मंदिर भी देखने योग्य है।
➤ भीलवाड़ा से 6 कि.मी. दूर प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल हरणी महादेव में पत्थर की झुकी हुई चट्टान के नीचे शिवजी का मंदिर बना हुआ है।
➤ यहां एक सरोवर एवं उनके छोटे-बड़े मंदिर, पार्क एवं धर्मशालाएं हैं।
➤ हरणी महादेव में प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर मेला लगता है।
➤ इसी प्रकार भीलवाड़ा में 10 कि.मी. दूर पुल के निकट अधरशिला नामक पर्यटन स्थल है।
➤ यहां उड़न छतरियाँ, पाताला महादेव और जैन मंदिर भी दर्शनीय है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — माण्डल Click here to read More

➤ भीलवाड़ा से 14 कि.मी. दूर स्थित माण्डल कस्बे में प्राचीन स्थल मिंदारा पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
➤ हाल ही में इस मिंदारे के जीर्णोद्धार से इसके आकर्षण में अभिवृद्धि हुई है।
➤ यहां से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ खचवाह की बत्तीस खम्भों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल है।
➤ 6 किलोमीटर दूर भीलवाड़ा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बाँध है।
➤ बरसात में लबालब जल राशि से भरा रहने वाला यह बांध पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। यहां हरे-भरे पार्क भी हैं।
➤ माण्डल में होली के तेरह दिन पश्चात् रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य अपने आप में विशेष स्थान रखता है।
➤ इस नृत्य को देखने के लिए हजारों नर-नारी उपस्थित होते हैं।
➤ कहते हैं कि शाहजहां के शासनकाल से ही यहां यह नृत्य होता चला आ रहा है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — माण्डलगढ़ Click here to read More

➤ भीलवाड़ा से 51 कि.मी. दूर माण्डलगढ़ नामक अति प्राचीन विशाल दुर्ग है।
➤ त्रिभुजाकार पठार पर स्थित यह दुर्ग बारी-बारी से मुगलों व राजपूतों के आधिपत्य में रहा।
➤ यह दुर्ग कई प्रसिद्ध युद्धों का प्रत्यक्ष गवाह रहा।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — मेनाल Click here to read More

➤ माण्डलगढ़ से 20 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ की सीमा पर स्थित पुरातात्विक एवं प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल मेनाल में 12वीं शताब्दी के चैहान काल के लाल पत्थरों से निर्मित महानालेश्वर मंदिर, रूठा रानी का महल, हजारेश्वर देखने योग्य हैं।
➤ यहां के मन्दिरों पर उत्कीर्ण विभिन्न प्रतिमायें अजन्ता एलोरा की प्रतिमाओं की याद ताजा कर देती है।
➤ हरी-भरी वादियों के बीच सैंकड़ों फुट ऊँचाई से गिरता मेनाली नदी का जल प्रपात भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — तिलस्वां Click here to read More

➤ माण्डलगढ़ से 40 किलोमीटर दूर है प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल तिलस्वां महादेव।
➤ यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है।
➤ यहां वर्ष भर देश के कोने-कोने से कुष्ठ व चर्म रोग से पीड़ित रोगी स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — बिजोलिया Click here to read More

➤ माण्डलगढ़ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित बिजोलिया में प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं बावड़ियां हैं।
➤ ये मंदिर भी 12वीं शताब्दी के बने हुए हैं।
➤ लाल पत्थरों से बने हुए मंदिर पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थलों में से एक हैं।
यहां नगर परकोटा बना हुआ है।
➤ इतिहास प्रसिद्ध किसान आंदोलन के लिए भी बिजोलिया प्रसिद्ध रहा है।
➤ यहां के मंदिर एवं चट्टानों पर बने शिलालेख भी गौरवशाली इतिहास के साक्षी है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — शाहपुरा Click here to read More

➤ भीलवाड़ा से 50 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर शाहपुरा अन्तर्राष्ट्रीय रामस्नेही समुदाय के लोगों का तीर्थस्थल है।
➤ यहां रामस्नेही संतों की कलात्मक छतरियों से बना रामद्वारा दर्शनीय है।
➤ यहां प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारेठ की प्रसिद्ध हवेली एक स्मारक के रूप में विद्यमान है।
➤ शाहपुरा के लगभग 250 वर्ष पुराने कलात्मक राजमहल भी यहां के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थलों में से एक हैं।
➤ यहां पर होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध फूलडोल मेला लगता है।
➤ उम्मेदसागर यहां का प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं एवं नगर के बीच बना कमल सागर भी अपने सौन्दर्य से आकर्षित करता है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — आसींद Click here to read More

➤ भीलवाड़ा-ब्यावर मार्ग पर भीलवाड़ा से 40 किलोमीटर दूर आसीन्द में सवाई भोज का प्राचीन मंदिर गुर्जरों का तीर्थ स्थल है।
➤ यहां प्रतिवर्ष भादो माह में विशाल मेला लगता है।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — गंगापुर Click here to read More

➤ भीलवाड़ा-उदयपुर मार्ग पर 45 किलोमीटर दूर गंगापुर गंगाबाई की प्रसिद्ध छतरी पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
➤ इस छतरी का निर्माण सिंधिया महारानी गंगाबाई की याद में महादजी सिंधिया ने करवाया था।
➤ गंगाबाई मंदिर की कलात्मक वास्तुकला सहज ही आकर्षित करती है।
➤ इसके अतिरिक्त जिले में अमरगढ़ की छतरियां एवं दुर्ग, बनेड़ा के महल, बदनोर के महल, मंगरोप एवं हमीरगढ़ का दुर्ग एवं माताजी का मंदिर आदि भी पर्यटन, पुरातत्व व ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं।

भीलवाड़ा (Bhilwara) — कला व संस्कृति Click here to read More

➤ भीलवाड़ा जिला फड़ एवं लघु चित्रशैली के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
➤ फड़ चित्रकला के क्षेत्र में जहां शाहपुरा निवासी दुर्गेश जोशी एवं शांतिलाल जोशी तथा भीलवाड़ा निवासी श्रीलाल जोशी को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चुका है।
➤ वहीं लघु चित्रशैली में भीलवाड़ा के वयोवृद्ध चित्रकार बदरीलाल सोनी भी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।
➤ शंकरलाल सोनी चांदी की कलात्मक वस्तुओं पर लघु चित्रकारी करने में दक्ष हैं।
➤ ‘अंकन’ नामक कला संस्था से जुड़े करीब 30-35 युवा चित्रकारों द्वारा समय-समय पर तैयार की जाने वाली कलाकृतियों की चित्र प्रदर्शनियां भी कला प्रेमियों को आकर्षित करती हैं।
➤ चित्रकला के अलावा यहां की अन्य लोककलाओं में गैर नृत्य, घूमर नृत्य, भवाई नृत्य, कालबेलिया नृत्य आदि प्रसिद्ध हैं।
➤ माण्डल, चांदरास आदि ग्रामीण क्षेत्रों के गैर नृत्य दलों में शामिल कलाकार हर वर्ष देश के विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं।
➤ यहां के भवाई नृत्य कलाकारों में स्व. छोगा भवाई का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
➤ अन्तर्राष्ट्रीय बहरूपिया कलाकार जानकीलाल का तो कोई सानी नहीं।
➤ इसके अलावा लाख की चूड़ी बनाना, पीतल के बर्तन बनाना, धातु की कलात्मक वस्तुएं व मूर्तियां, चमड़े की जूतियां बनाने संबंधी हस्तशिल्प भी यहां खूब पनपे।

भीलवाड़ा (Bhilwara)— औद्योगिक विकास Click here to read More

➤ वस्त्र उद्योग ​भीलवाड़ा में सबसे ज्यादा विकसित हुआ है।
➤ अपने इसी उद्योग की वजह से इस जिले को राजस्थान का मैनचेस्टर भी कहा जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top