Rajasthan gk-social reforms in rajasthan (sati pratha)

Rajasthan gk-social reforms in rajasthan (sati pratha)

राजस्थान में समाज सुधार आंदोलन – सती प्रथा उन्मूलन 

सती प्रथा भारत के अन्य क्षेत्रों के साथ राजपूताना में भी प्रचलित थी। मध्यकाल में मुहम्मद बिन तुगलक और अकबर ने भी इस प्रथा को रोकने का प्रयास किया। 

ब्रिटिश काल में सामाजिक और सरकारी दोनों दृष्टि से सती प्रथा को रोकने के प्रयत्न हुये हैं राजा राममोहन राय के प्रयास से प्रेरित होकर लार्ड विलियम बैंटिंक ने 1829 में कानून बनाकर सती प्रथा को रोकने का प्रयास किया। 

पहले पहल दक्षिण पूर्व राजस्थान की बूंदी, कोटा और झालावाड़ के शासकों व रियासतों के कैप्टन रिचर्डसन ने खरीता, आदेश, भेजा और सती प्रथा रोकने के कानून बनाने के निर्देश दिए। 

अंग्रेजों ने पहले पहल सामाजिक सुधार में सीधा दखल देना ठीक नहीं समझा। इसलिए रिचर्डसन के खरीता भेजने के प्रयासों को ब्रिटिश अधिकारियों ने विरोध किया। 

यद्यपि इस अवधि में कम्पनी अपनी स्थिति रियासतों में मजबूत होने के कारण अहस्तक्षेप की नीति त्यागकर हस्तक्षेप की नीति अपनाने पर विचार कर रही थी। 

इसी परिप्रेक्ष्य में 1839 में पोलिटिकल एजेन्ट जयपुर की अध्यक्षता में एक संरक्षक समिति गठित की गई और सती प्रथा निषेध के लिये मंथन किया, इसके लिये उन्होंने सामन्तों और स्थानीय अधिकारियों का सहयोग लेनाा उचित समझा।

सती प्रथा उन्मूलन के प्रयास

1844 में जयपुर संरक्षक समिति ने एक सती प्रथा उन्मूलन हेतु एक विधेयक पारित किया यह प्रथम वैधानिक प्रयास था जिसका समर्थन नहीं तो विरोध भी नहीं हुुआ। 

अतः इससे प्रोत्साहित होकर एजेन्ट टू द गर्वनर जनरल ए.जी.जी.ने उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर , सिरोही, बांस वाड़ा, धौलपुर, जैसलमेर, बूंदी, कोटा और झालावाड़ में स्थित ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट को निर्देश दिये कि वे अपने व्यक्तिगत प्रभाव का उपयोग करते हुए शासकों से सती उन्मूलन हेतु नियम पारित कराने का प्रयास करे। 

यह प्रयास कई रियासतो में सफल रहा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ ने 1846 में सती प्रथा को विधि सम्मत नहीं माना। 

इसी क्रम में 1848 में कोटा और जोधपुर में भी और 1860 में अनेक प्रयासो के बाद मेवाड़ ने भी सती प्रथा उन्मूलन हेतु कानून बनाये गये। 

उक्त कानून का उल्लंघन करने पर जुर्माना वसूल करने की व्यवस्था की गई। 1881 में चार्ल्स वुड भारत सचिव बने, वुड ने कुरीतियों को रोकने के प्रयासों को प्रभावहीन मानते हुए ए.जी.जी. राजपूताना को गश्ती पत्र भेजकर निर्देष दिये कि कुरीतियों को रोकने के लिये जुर्माने की अपेक्षा बन्दी बनाने जैसे कठोर नियम लागू किये जायें। 

अतः 1861 में ब्रिटिष अधिकारियों ने शासकों को नये कठोर नियम लागू करने की सूचना दी, जिसके अनुसार सती सम्बन्धित सूचना मिलने पर कारावास का दण्ड दिया जा सकता है, जुर्माने के साथ शासक को पद से हटाने और उस गाँव को खालसा किया जा सकता है। 

यदि शासक इन नियमों की क्रियान्विति में लापरवाही दिखाते हैं तो उन्हें दी जाने वाली तोपों की सलामी संख्या घटाई जा सकती है। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार की दबाव, नीति और स्थानीय अधिकारियो के सहयोग से 19’ वीं सदी के अन्त तक यह कुरीति नियंत्रित हो गई कुछ छुट-पुट घटनायें अवश्य हुई। 

सरकार के अतिरिक्त सामाजिक जागृति के भी प्रयास हुये। स्वामी दयानन्द सरस्वती का राजस्थान आगमन इस दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। उन्होने सती प्रथा को अनुचित एवं अमानवीय मानते हुए निन्दनीय कृत्य बताया। 

उन्होंने शास्त्रों के आधार पर इसका विरोध किया और समाज को एक नई दिशा प्रदान की। आजादी के बाद भी सितम्बर 1987 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सती प्रथा को विधि सम्मत नहीं माना। न्यायालय ने अपने मत के समर्थन में पर्याप्त प्रसंगों को उदधृत किया।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top