History of Rajasthan (Important facts for RPSC exams) Part-3
राजस्थान के इतिहास के परीक्षापयोगी बिन्दु (भाग-3)
राजस्थान और पाषाण काल
प्राचीन प्रस्तर युग के अवशेष अजमेर, अलवर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, जयपुर, जालौर, पाली, टोंक आदि क्षेत्रों की नदियों अथवा उनकी सहायक नदियों के किनारों से प्राप्त हुये हैं।
चित्तौड़ और इसके पूर्व की ओर तो औजारों की उपलब्धि इतनी अधिक है कि ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह क्षेत्र इस काल के उपकरणों को बनाने का प्रमुख केन्द्र रहा हो।
राजस्थान में मध्य पाषाण एवं नवीन पाषाण युग के उपकरणों की उपलब्धि पश्चिमी राजस्थान में लूनी तथा उसकी सहायक नदियाँ की घाटियों व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में चित्तौड़ जिले में बेड़च और उसकी सहायक नदियाँ की घाटियों में प्रचुर मात्रा में हुई है।
बागौर और तिलवाड़ा के उत्खनन से नवीन पाषाणकालीन तकनीकी उन्नति पर अच्छा प्रकाश पड़ा है।
अजमेर, नागौर, सीकर, झुंझुनूं, कोटा, बूँदी, टोंक आदि स्थानों से भी नवीन पाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुये हैं।
कालीबंगा
यह सभ्यता स्थल वर्तमान हनुमानगढ़ जिले में सरस्वती-दृषद्वती नदियों के तट पर बसा हुआ था, जो 2400-2250 ई. पू. की संस्कृति की उपस्थिति का प्रमाण है।
कालीबंगा में मुख्य रूप से नगर योजना के दो टीले प्राप्त हुये हैं।
इनमें पूर्वी टीला नगर टीला है, जहाँ से साधारण बस्ती के साक्ष्य मिले हैं। पश्चिमी टीला दुर्ग टीले के रूप में है।
कालीबंगा से पूर्व-हड़प्पाकालीन, हड़प्पाकालीन और उत्तर हड़प्पाकालीन साक्ष्य मिले है।
पूर्व-हड़प्पाकालीन स्थल से जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं, जो संसार में प्राचीनतम हैं।
वर्तमान में यहाँ घग्घर नदी बहती है, जो प्राचीन काल में सरस्वती के नाम से जानी जाती थी।
कालीबंगा से पानी के निकास के लिए लकड़ी व ईंटों की नालियाँ बनी हुई मिली हैं।
कालीबंगा के निवासियों की मृतक के प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने वाली तीन समाधियाँ मिली हैं।
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