Historical Places of Ajmer: nasiyan gee, Rajputana museum, Dadabari and Bajrang garh Temple

अजमेर के अन्य दर्शनीय स्थल

नसियांजी

स्व.सेठ मूलचन्द सोनी द्वारा इसका निर्माण प्रारंभ किया गया था तथा उनके ही पुत्र स्व.सेठ टीकमचन्द सोनी द्वारा सन् 1865 में निर्माण कार्य पूरा कराया गया। यह जैन मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ अथवा ऋषभदेव का है। मुख्य मंदिर के पीछे विशाल भवन में जैन दर्शन व तीर्थकंरों के जीवन से संबंधित विविध घटनाएं चित्रों व सुनहरे मॉडलों के माध्यम से प्रदर्शित की गई है।

राजपूताना संग्रहालय

अजमेर नगर के मध्य स्थित विशाल किला है जिसे मैगजीन के नाम से जाना जाता है। तत्कालीन राजपूताना और गुजरात क्षेत्र में युद्धों के संचालन के लिए सम्राट अकबर के शासनकाल में सन् 1570 में इस किले का निर्माण कराया गया था। इसमें 4 बड़े बुर्ज हैं जिनको जोड़ने वाली दीवारों में कमरे हैं। इसका सबसे सुन्दर भाग 84 फुट उंचा तथा 43 फुट चौड़ा दरवाजा है।

दादाबाड़ी

श्वेताम्बर सम्प्रदाय के जैन संत जिनवल्लभ सूरी के शिष्य श्री जिनदत्त सूरी जी की स्मृति में निर्मित दादाबाड़ी अजमेर रेलवे स्टेशन से एक मील की दूरी पर स्थित है। श्री जिनदत्त दादा के नाम से जाने जाते थे। अत: उनके समाधि स्थल को दादाबाड़ी के नाम से सम्बोधित किया गया। सूरी जी की स्मृति में आषाढ़ शुक्ला 10 और 11 को वार्षिक मेला भी यहां भरता है।

बजरंगगढ़

सागर के निकट पहाड़ी पर स्थित हनुमानजी का एक मंदिर काफी पुराना है। यह मन्दिर हिन्दुओं का एक पवित्र श्रद्धा स्थल बना हुआ है। सैकड़ों व्यक्ति प्रतिदिन प्रात: और सायं दर्शनार्थ आते हैं। भाद्रपद बदी 3 को प्रति वर्ष यहां मेला भी मरता है।

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